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बटवारा

Writer's picture: NSS SVCNSS SVC

यह महज़ एक छोटी सी कहानी है, एक ऐसी सामाजिक लड़ाई की जो कभी धर्म, तो कभी मुल्क के नाम पर दीवारें खड़ी कर देती है। इंसान, इंसान होना भूल जाता है, व भूल जाता है कि शांति व अमन से ही एक उन्नतिशील समाज का निर्माण मुमकिन है।।




बटवारा


तब की यह बात है,

जब नंगी तलवारें लिए यह फैसला करना था,

कि तू किस "देश" का मेरा भाई है।

खून अपना चाहे क्यूं ना हो,

पर "सीमा" पार खड़ा तू,

महज़ एक "पाक- हिंदुस्तानी" की लड़ाई है।


मज़ाक की यह बात है,

कि आज भी वही पुरानी रात है।


जब, आज फिर यह फैसला करना है,

की तू किस "मज़हब" का मेरा भाई है।

राम- अल्लाह चाहे एक ही क्यूं ना हो,

पर "दीवार" पार खड़ा तू,

महज़ एक "अयोध्या- बाबरी" की लड़ाई है।


मज़ाक की यह बात है,

कि आज भी वही पुरानी रात है।


बस फर्क तो सिर्फ इतना सा है -

कि तब दो मुल्क बटें थे,

और आज भगवान बटा है।।

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❤️_Arpan




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