- चाहत धवन
मैं नीर भरी दुःख की बदली!
विस्तृत नभ का कोना कोना,
मेरा कभी न अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही,
उमड़ी थी कल मिट आज चली.
~ महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फरूखाबाद जिले के एक संभ्रांत परिवार में सं 1907 ई. मे हुआ था। यह हिंदी के छायावादी काव्य-आंदोलन के चार प्रमुख़ स्तंभों में से हैं। महादेवी करूणा , पीड़ा तथा वेदना की गायिका हैं। इन्हें आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है। काव्य के समान ही गद्य के छेत्र में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। इनके गद्य में यथार्थ जीवन के करुण चित्र मिलते हैं । इनकी शृंखला की कड़िया (1942) शीर्षक रचना में हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श का आरंभ माना जाता है। निहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, अग्निरेखा, प्रथम आयाम, सप्तपर्णा, यामा, आत्मिका, दीपगीत, नीलामम्बरा और सन्धिनी नामक रचना इनकी प्रमुख रचना थी जिनकी वजह से इन्हे हिंदी जगत में इतनी ख्याति प्राप्त हुई। इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार , भारत-भारती पुरुस्कार , पद्मभूषण तथा पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया है।
भारत के साहित्य आकाश में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की भांति प्रकाशमान है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं।
कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। न केवल उनका काव्य बल्कि उनके समाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे।
महादेवी वर्मा के अनुसार , पुरूष और स्त्री के स्वभाव में कुछ अंतर है। स्त्री के स्वभाव और गृह के आकर्षण ने पुरूष को युद्ध से कुछ विरत भले ही किया है , लेकिन युद्ध , कर्म और संघर्ष उसकी मूल वृत्ति है , उसके लिए गर्व के कारण है। इसी नशे में स्त्री को दुर्बल घोषित कर दिया और इसी चुनौती को स्वीकार करते स्त्री भी पुरूष का ही दूसरा रूप बनने का संकल्प कर लिया। यानि अनजाने में पुरूषों ने स्त्रियों की एक ऐसी सेना तैयार कर ली , जो समय आने पर अस्त्र लेकर संहार की भूमिका भी अदा कर सकती हैं।
महादेवी के अनुसार किसी भी समाज की स्त्री का असली विकास या ह्रास नारी पर ही निर्भर करता है। भारत की नारी आज शिक्षिका , डॉक्टर , वकील , राजनेता , खिलाड़ी , पर्वतारोही , इंजीनियर , सैनिक , सेना अधिकारी , एयर होस्टेस , फैशन मॉडल बन रही हैं। युगों से पीड़ित रहने के कारण भले ही पुरुष सत्ता उसे घर-बाहर सर्वत्र संदेह की दृष्टि से देख रहे हों , लेकिन उसने नए नतीजे मापने शुरू करदिये हैं। आज अर्थतंत्र में नारी की हस्तक्षेप के कारण कर्मक्षेत्र में खिंची रेखाएं भी मिटने लगी हैं। कुल मिलाकर इन्होंने अपनी रचनाओं में भारतीय नारी की आर्थिक आत्मनिर्भरता के महत्वपूर्ण सवाल को उठाया है।
Chahat Dhawan
B. Sc life sciences, second year
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